Bhagavad Gita: Chapter 11, Verse 6

पश्यादित्यान्वसून् रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा |
बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत || 6||

पश्य-देखो; आदित्यान्-अदिति के बारह पुत्रों को; वसून्–आठ वसुओं को; रुद्रान्–रुद्र के ग्यारह रूपों को; अश्विनौ-दो अश्विनी कुमारों को; मरुतः-उनचास मरुतों को; तथा—भी; बहूनि अनेक; अदृष्ट-न देखे हुए; पूर्वाणि-पहले; पश्य-देखो; आश्चर्याणि-आश्चर्यों को; भारत-भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्थात् अर्जुन;

Translation

BG 11.6: हे भरतवंशी! आदिति के (बारह) पुत्रों, (आठ) वसुओं (ग्यारह) रुद्रों, (दो) अश्विनी कुमारों और उसी प्रकार से (उनचास) मरुतों और पहले कभी न प्रकट हुए अन्य आश्चर्यों को मुझमें देखो।

Commentary

भगवान के विश्वरूप में केवल पृथ्वी पर विद्यमान आश्चर्य ही सम्मिलित नहीं हैं अपितु अन्य उच्च लोकों के आश्चर्य जिन्हें कभी एक साथ इस प्रकार से न देखा गया हो, भी सम्मिलित हैं। वे बताते हैं कि स्वर्ग के सभी देवता उनके दिव्य स्वरूप का एक छोटा-सा अंश है। उन्होंने अपने भीतर बारह आदित्यों, आठ वसुओं, ग्यारह रुद्रों, दो अश्विनी कुमार, और उसी प्रकार उनचास मरुत दिखाए। आदिति के 12 पुत्रों के नाम धाता, मित्र, अर्यमा, शक्र, वरुण, अंश, भाग, विवस्वान्, पूषा, सविता, त्वष्टा और वामन हैं।

आठ वसुओं का नाम द्वारा, ध्रुव, सोम, अहः, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास हैं। ग्यारह रुद्रों में हार, बहुरूप, त्रयम्बक, अपराजित, वृषस्कपि, शम्भू, कपंर्दो, रैवत, मृगव्याध सर्व और कपाली हैं। जुड़वा जन्में अश्विनी कुमार भगवान के वैद्य हैं। उनचास मरुतों (वरुण देव) में सत्त्वज्योति, आदित्य, सत्यज्योति, तीर्थग्ज्योति, सज्योति, ज्योतिषमान, हरीत, ऋतजित, सत्यजीत्, सुषेण, सेनजित्, सत्यमित्र, अभिमित्र, हरिमित्र, कृत, सत्य, ध्रुव, धर्ता, विधर्ता, विद्याराय, ध्वांत, धुनि, उग्र, भीम, अभियू, साक्षिप, इद्रिक, अन्यद्रिक, याद्रिक, प्रतिकृत, ऋक्, समिति, समारंभ, इद्दक्ष, पुरुष, अन्यदृक्ष, चेतस, समित, समीदृक्ष, प्रतिदृक्ष, मारुति, सरत, देव, दिशा, यजुः, अनुद्रिक, सम, मानुष और विश आते हैं।

Swami Mukundananda

11. विश्वरूप दर्शन योग

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