अन्ये त्वेवमजानन्त: श्रुत्वान्येभ्य उपासते |
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणा: || 26||
अन्ये अन्य; तु–लेकिन; एवम्-इस प्रकार; अजानन्तः-आध्यात्मिक ज्ञान से अनभिज्ञ; श्रुत्वा-सुनकर; अन्येभ्यः-अन्यों से; उपासते-आराधना करना प्रारम्भ कर देते हैं; ते–वे; अपि-भी; च-तथा; अतितरन्ति-पार कर जाते हैं; एव-निश्चय ही; मृत्युम्-मृत्युः श्रुतिपरायणाः-संतो के उपदेश सुनकर।
BG 13.26: कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो आध्यात्मिक मार्ग से अनभिज्ञ होते हैं लेकिन वे संत पुरुषों से श्रवण कर भगवान की आराधना करने लगते हैं। वे भी धीरे-धीरे जन्म और मृत्यु के सागर को पार कर लेते हैं।
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संतों से भक्ति विषय का श्रवण करने वाले पुरुष भी धीरे-धीरे जन्म और मृत्यु के समुद्र को पार कर सकते हैं। कुछ लोग साधना पद्धति से अनभिज्ञ होते हैं लेकिन वे दूसरों के द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान का श्रवण करते हैं और फिर आध्यात्मिक मार्ग की ओर आकर्षित होते हैं। वास्तव में, अधिकतर वही लोग आध्यात्मिक मार्ग की ओर अग्रसर हुए जिन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं थी। लेकिन किसी मध्यम से उन्हें जब इस संबंध में कुछ पढ़ने और श्रवण करने का अवसर मिला तब उनमें भगवान की भक्ति के प्रति रुचि उत्पन्न हुई और उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा प्रारम्भ की।
वैदिक परम्परा में संतों की वाणी के श्रवण को आध्यात्मिक कल्याण के उपाय के रूप में विशेष महत्त्व दिया गया है। श्रीमद्भागवत् में परीक्षित ने शुकदेव से प्रश्न किया कि हम अपने हृदय को कैसे शुद्ध कर सकते हैं? जैसे कि काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या द्वेष आदि। शुकदेव उत्तर देते हैं-
श्रृण्वतां स्वकथां कृष्ण:पुण्यश्रवणकीर्तनः।
हृद्यन्तःस्थो ह्यभद्राणि विधुनोति सुहृत्सताम् ।।
(श्रीमद्भागवतम्-1.2.17)
"परीक्षित! संतों से केवल भगवान के दिव्य नामों, रूपों, लीलाओं, गुणों, धामों और उनके संतों का श्रवण करो। इससे तुम्हारे हृदय में विद्यमान अनंत जन्मों की मैल स्वतः नष्ट हो जाएगी।" जब हम किसी सही स्रोत से श्रवण करते हैं तब हम प्रामाणिक ज्ञान प्राप्त करते हैं और जिस संत से हम यह श्रवण करते हैं उसके प्रति भी हमारे भीतर अटूट श्रद्धा उत्पन्न होने लगती है। संतों का श्रवण करना श्रद्धा उत्पन्न करने का सरल मार्ग है। आध्यात्मिक साधना हेतु संतों से मिलने की उत्सुकता भी हमें निर्मल करती है। भक्ति के लिए उत्साह ऐसा बल प्रदान करती है जो साधकों की लौकिक चेतना को समाप्त करने और साधना के मार्गकी बाधाओं को दूर करने में सहायता करती है। श्रद्धा और उत्साह ऐसी आधारशिलाएँ हैं जिन पर भक्ति रूपी भवन टिका रहता है।