सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च |
प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च || 17||
सत्त्वात् सत्वगुणी; सञ्जायते-उत्पन्न होता है; ज्ञानम्-ज्ञान; रजसः-रजोगुण से; लोभः-लालच; एव–निश्चय ही; च और प्रमाद असावधानी; मोहौ-तथा मोह; तमसः-तमोगुण से; भवतः होता है; अज्ञानम्-अज्ञान; एव-नि; संदेह च-और।
BG 14.17: सत्त्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से लोभ और तमोगुण से अज्ञानता, प्रमाद और मोह उत्पन्न होता है।
Start your day with a nugget of timeless inspiring wisdom from the Holy Bhagavad Gita delivered straight to your email!
तीनों गुणों से प्राप्त होने वाले परिमाणों में भिन्नता का उल्लेख करने के पश्चात् अब श्रीकृष्ण इसके कारणों को व्यक्त करते हैं। सत्त्वगुण विवेक बुद्धि को बढ़ाता है तथा उचित और अनुचित के बीच भेद करने की क्षमता प्रदान करता है। यह इन्द्रियों को तुष्ट करने के लिए उत्पन्न काम-वासनाओं को शांत करता है तथा सुख और संतोष की भावना उत्पन्न करता है। इससे प्रभावित लोग बौद्धिक गतिविधियों और उत्तम विचारों की ओर प्रवृत्त होते हैं। सत्त्वगुण बुद्धिमत्ता को बढ़ावा देता है। रजोगुण इन्द्रियों को भड़काता है और मन को निरंकुश बनाकर उसे तृष्णाओं में घुमाता रहता है। जीव इसके फन्दे में फंस जाता है तथा अधिक धन और सुख प्राप्त करने के लिए अधिक परिश्रम करने लगता है। तमोगुण जीव को जड़ता और अविद्या से ढक देता है। अज्ञानता में डूबा व्यक्ति कुत्सित और अधम कार्य करने लगता है और उसके बुरे परिणाम भुगतता है।