Bhagavad Gita: Chapter 16, Verse 4

दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोध: पारुष्यमेव च |
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम् || 4||

दम्भ:-पाखंड; दर्पः-दम्भ; अभिमान:-गर्व; च और; क्रोध:-क्रोध; पारुष्यम्-कठोर; एव–निश्चय ही; च-और; अज्ञानम्-अज्ञानता; च-और; अभिजातस्य–से सम्पन्न; पार्थ-पृथापुत्र अर्थात् अर्जुन; सम्पदम्-गुण; आसुरीम् आसुरी।।

Translation

BG 16.4: हे पार्थ! पाखण्ड, दम्भ, अभिमान, क्रोध, निष्ठुरता और अज्ञानता आसुरी प्रकृति वाले लोगों के गुण हैं।

Commentary

श्रीकृष्ण अब आसुरी प्रकृति से युक्त लोगों के छः लक्षणों की व्याख्या करते हैं। वे पाखंडी होते हैं। इसका तात्पर्य है कि वे दूसरों को प्रभावित करने के लिए शुभ लक्षणों से संपन्न न होते हुए भी सदाचरण का प्रदर्शन करते है। यह कृत्रिम (जेकिल एंड हाइड) व्यक्तित्व है जोकि आंतरिक रूप से तो अशुद्ध है किंतु बाहर से शुद्धता की प्रतीति कराता है। 

आसुरी गुण वालों का स्वभाव अहंकार से परिपूर्ण और दूसरों के प्रति अशिष्ट होता है। वे अपनी उपलब्धियों और उपाधियों जैसे धन, शिक्षा, सौन्दर्य, पद-प्रतिष्ठा आदि पर गर्व करते हैं। मन पर नियंत्रण न होने के कारण वे शीघ्र क्रोधित हो जाते हैं। कामवासना और लालच के कारण कुंठाग्रस्त रहते हैं। वे निर्दयी और कठोर होते हैं तथा दूसरों के दुःखों में संवेदनशील नहीं होते। उन्हें आध्यात्मिक सिद्धांतों का ज्ञान नहीं होता और वे अधर्म को धर्म मानते हैं।

Swami Mukundananda

16. दैवासुर सम्पद् विभाग योग

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