Bhagavad Gita: Chapter 15, Verse 7

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।
मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति॥7॥

मम–मेरा; एव-केवल; अंश:-अणु अंश; जीव-लोके-भौतिक संसार में; जीवभूतः-सन्निहित आत्मा; सनातनः-नित्य; मनः-मन; षष्ठानि छह; इन्द्रियाणि-इन्द्रियों सहित; प्रकृति-भौतिक प्रकृति के बंधन में; स्थानि-स्थित; कर्षति-संघर्ष।

Translation

BG 15.7: इस भौतिक संसार की आत्माएँ मेरा शाश्वत अणु अंश हैं लेकिन प्राकृत शक्ति के बंधन के कारण वे मन सहित छः इन्द्रियों के साथ संघर्ष करती हैं।

Commentary

श्रीकृष्ण ने पहले यह समझाया था कि जो उनके लोक में जाते हैं वे पुनः संसार में लौटकर नहीं आते। अब वे उन जीवात्माओं का वर्णन करते हैं जो भौतिक क्षेत्र में रहती हैं। सर्वप्रथम वे आश्वस्त करते हैं कि वे सब उनका अणु अंश हैं। आईये अब भगवान के अंशों को समझें। ये दो प्रकार के होते हैं

1. स्वांशः ये भगवान के अवतार हैं, जैसे राम, नरसिंह, वराह आदि। ये श्रीकृष्ण से भिन्न नहीं हैं और इसलिए इन्हें स्वांश कहा जाता है जिसका तात्पर्य अभिन्न अंश है। 

2. विभिन्नांशः ये भगवान के अंश से भिन्न हैं। ये प्रत्यक्ष रूप से भगवान के अंश नहीं हैं बल्कि

ये उनकी आत्मशक्ति (जीव शक्ति) हैं। इस श्रेणी में सृष्टि की सभी आत्माएँ सम्मिलित हैं। श्रीकृष्ण ने 7वें अध्याय के 5वें श्लोक में कहा था-“हे बलिष्ट भुजाओं वाले अर्जुन! इस प्राकृत शक्ति से परे मेरी एक अन्य परा शक्ति है। वह जीवात्मा है जो इस संसार में जीवन का आधार है।"  

आगे विभिन्नांश आत्माओं की तीन श्रेणियों का वर्णन इस प्रकार है

1. नित्य सिद्धः ये वो आत्माएँ हैं जो सदैव जीवन मुक्त अवस्था में थीं और अनन्त काल से भगवान के लोक में वास कर रही हैं और उनकी लीलाओं में भाग लेती हैं। 

2. साधन सिद्धः ये हमारी जैसी ऐसी आत्माएँ हैं जो पहले भौतिक क्षेत्र में रहती थीं लेकिन उन्होंने कठोर साधना एवं तल्लीन भक्ति द्वारा भगवान को प्राप्त किया। अब वे शेष अनन्त काल के लिए भगवान के दिव्य लोक में वास करती हैं और भगवान की दिव्य लीलाओं में भाग लेती हैं। 

3. नित्य बद्धः ये आत्माएँ अनन्त काल से भौतिक क्षेत्र में निवास कर रही हैं। ये पाँच इन्द्रियों और मन में लिप्त रहती हैं और इसलिए संघर्ष कर रही हैं। 

परांश्चि खानि व्यतृणात स्वयंभू 

(कठोपनिषद्-2.1.2) 

"सृष्टा ब्रह्मा ने हमारी इन्द्रियों को ऐसा बना दिया है कि वे बाह्य संसार की ओर आकर्षित रहती हैं।" नित्य बद्ध इन विभिन्नांशों के लिए श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे मन और इन्द्रियों की तृप्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं और इस प्रक्रिया में कष्ट पा रहे हैं। वे अब अगले श्लोक में व्याख्या करेंगे कि मृत्यु होने के पश्चात् जब आत्मा दूसरे शरीर में प्रवेश करती है तब मन और इन्द्रियों की क्या अवस्था होती है।