Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 30

प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये।
बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी ॥30॥

प्रवृत्तिम्-गतिविधियाँ; च और; निवृत्तिम्-कर्म से वैराग्य; च-और; कार्य-उचित कार्य: अकार्य-अनुचित कार्य; भय-भय; अभये-भय रहित; बन्धम्-बंधन क्या है; मोक्षम्-मोक्ष क्या है; च और; या-जो; वेत्ति–जानता है; बुद्धिः-बुद्धि; सा-वह; पार्थ-पृथापुत्र, अर्जुन; सात्त्विकी-सत्वगुणी।

Translation

BG 18.30: हे पृथापुत्र! वह बुद्धि सत्वगुणी है जिसके द्वारा यह जाना जाता है कि क्या उचित है और क्या अनुचित है, क्या कर्त्तव्य है और क्या अकरणीय है, किससे भयभीत होना चाहिए और किससे भयभीत नहीं होना चाहिए, और क्या बंधन में डालने वाला है और क्या मुक्ति देने वाला है।

Commentary

हम निरन्तर अपनी पसंद का चयन करने हेतु अपनी स्वतंत्र इच्छा का प्रयोग करते हैं और हमारे समेकित विकल्प यह निर्धारित करते हैं कि हम जीवन में कहाँ तक पहुँचेंगे। रॉबर्ट फ्रॉस्ट ने अपनी कविता 'रोड नॉट टेकन' में इसका सजीव ढंग से वर्णन किया है

मैं आहें भर कर कहूँगा, 

आज से युगों-युगों तक कहीं, 

वन में दो अलग-अलग मार्ग और मैं था, 

मैंने उस मार्ग को चुना, 

जिस पर कम लोग यात्रा करते थे

और इसी से सारे अन्तर का बोध हुआ। 

उपर्युक्त विकल्प का चयन करने के लिए विकसित विवेक शक्ति का होना आवश्यक है। अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश उसे विवेक शक्ति से युक्त करने के लिए दिया गया था। आरम्भ में अर्जुन अपने कर्त्तव्य पालन के संबंध में उलझन में था। अपने स्वजनों के प्रति अत्यधिक मोह के कारण वह उचित और अनुचित का निर्णय कर पाने में किंकर्तव्यविमूढ था। अपनी दुर्बलता और भय के कारण व्यथित होते हुए वह भगवान के शरणागत होता है और उनसे प्रार्थना करता है कि वे उसे उचित कर्त्तव्य का ज्ञान प्रदान करें। भगवान के दिव्य ज्ञान द्वारा अर्जुन को उस समय विवेक शक्ति विकसित करने में सहायता प्राप्त हुई जब उन्होंने उसे अपना अंतिम निर्णय सुनाया-"मैंने तुम्हें वह ज्ञान बताया है जो सभी रहस्यों में गुह्यतम है। इसका गहनता से मंथन करो और फिर अपनी इच्छा अनुसार तुम्हें जो उचित लगे वही करो।" (श्लोक 18.63) 

सत्वगुण बुद्धि को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करता है इसलिए उचित और अनुचित कर्म और विचारों में भेद करने के प्रयोजनार्थ इसकी क्षमता को परिष्कृत करना चाहिए। सात्विक बुद्धि वह है जो हमें यह बोध और किस प्रकार के कार्यो का त्याग करना चाहिए। यह हमारे व्यक्तित्त्व की कमियों के कारण का बोध कराती है और उन्हें दूर करने का उपाय बताती है।