Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 7

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥7॥

यदा-यदा-जब-जब भी; हि-निश्चय ही; धर्मस्य-धर्म की; ग्लानिः-पतन; भवति होती है; भारत-भरतवंशी, अर्जुन; अभ्युत्थानम्-वृद्धि; अधर्मस्य-अधर्म की; तदा-उस समय; आत्मानम्-स्वयं को; सृजामि–अवतार लेकर प्रकट होता हूँ; अहम्–मैं।

Translation

BG 4.7: जब जब धरती पर धर्म का पतन और अधर्म में वृद्धि होती है तब उस समय मैं पृथ्वी पर अवतार लेता हूँ।

Commentary

वस्तुतः धर्म एक नियत कर्म है जो हमारे आध्यात्मिक उत्थान और उन्नति में सहायक होता है और धर्म के प्रतिकूल आचरण को अधर्म कहा जाता है। जब धरती पर अधर्म प्रबल हो जाता है तब संसार के सृष्टि कर्ता और शासक प्रकट होकर अधर्म का विनाश कर धर्म की स्थापना करते हैं। इस प्रकार से भगवान के प्रकट होने को अवतार कहा जाता है। संस्कृत भाषा के शब्द 'अवतार' को अंग्रेजी भाषा के शब्दकोश में भी सम्मिलित किया गया है और जिसका प्रयोग प्रायः मीडिया स्क्रीन पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए किया जाता है। इस संबंध में हम भगवान के दिव्य प्राकट्य के लिए इसका प्रयोग मूल संस्कृत के शब्दार्थ के रूप में करेंगे। श्रीमद्भागवतम् में 24 अवतारों का उल्लेख मिलता है किन्तु वैदिक धर्मग्रंथों में अनन्त अवतारों का वर्णन किया गया है।

जन्मकर्माभिधानानि सन्ति मेऽङ्ग सहस्रश।

न शक्यन्तेऽनुसंख्यातुमनन्तत्त्वान्मयापि हि।।

 (श्रीमद्भागवतम्-10.51.36)

 "सृष्टि के प्रारम्भ से कोई भी अनन्त अवतारों की गणना नहीं कर सकता। इन अवतारों का वर्गीकरण निम्न चार प्रकार से किया गया है"

1. आवेशावतार-जब भगवान अपनी दिव्य शक्तियाँ किसी पुण्य जीवात्मा में प्रकट कर उसके माध्यम से अपनी लीलाएँ करते हैं। नारद मुनि ऐसे अवतार का उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त महात्मा बुद्ध का अवतार भी इसका उदाहरण हैं। 

2. प्राभावावतार-ये भगवान के साकार रूप के अवतार हैं जिसमें वे अपनी कुछ दिव्य शक्तियों

का प्रदर्शन करते हैं। प्रभावातार भी दो प्रकार के होते हैं। (क) जब भगवान थोड़े समय के लिए प्रकट होकर अपना कार्य सम्पन्न कर चले जाते हैं। हँसावतार इसका दृष्टांत है जहाँ भगवान ने प्रकट होकर चार कुमारों के प्रश्नों के उत्तर दिये और फिर अन्तर्ध्यान हो गये। (ख) जब भगवान अवतार लेकर कई वर्षों तक पृथ्वी पर रहते हैं। वेदव्यास जिन्होंने 18 पुराणों और महाभारत की रचना एवं वेदों को चार भागों में विभक्त किया था, वे इस प्रकार के अवतार का उदाहरण है। 

3. वैभवातार-जब भगवान विराट रूप में प्रकट होकर अपनी दिव्य शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं मत्स्यवतार, कूर्मावतार और वराहावतार यह सभी वैभावतार के उदाहरण हैं। 

4. प्रवास्थावतार-जब भगवान अपनी दिव्य शक्तियों सहित स्वयं अवतार लेकर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। श्रीकृष्ण, श्रीराम और नरसिंहावतार सभी प्रवास्थावतार हैं। 

इस वर्गीकरण का तात्पर्य यह दर्शाना नहीं है कि कोई अवतार अन्य दूसरे अवतारों से श्रेष्ठ है। वेदव्यास जो स्वयं भगवान का अवतार थे, ने स्पष्ट वर्णन किया है-" सर्वे पूर्णाः शाश्वताश्च देहास्तस्यपरमात्मनः" (पद्मपुराण) अर्थात "सभी अवतार भगवान की दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण थे।" इसलिए हमें किसी अवतार की तुलना में किसी अन्य अवतार को बड़ा या छोटा नहीं समझना चाहिए। भगवान अपनी इच्छा के अनुरूप विशेष अवतारों के दौरान सम्पन्न किए जाने वाले कार्यों के आधार पर अपेक्षित शक्तियों के साथ प्रकट होते हैं। शेष शक्तियाँ अवतार में अप्रकट रहती हैं इसलिए उपर्युक्त वर्गीकरण बनाये गये हैं।

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