अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः ।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥24॥
अव्यक्तम्-निराकारव्यक्तिम् साकार स्वरूप; आपन्नम्-प्राप्त हुआ; मन्यन्ते-सोचना; माम्-मुझको; अबुद्धयः-अल्पज्ञानी; परम्-सर्वोच्च; भावम् प्रकृति; अजानन्तः-बिना समझे मम-मेरा; अव्ययम्-अविनाशी; अनुत्तमम् सर्वोत्तम।
Translation
BG 7.24: बुद्धिहीन मनुष्य सोचते हैं कि मैं परमेश्वर पहले निराकार था और अब मैंने यह साकार व्यक्तित्त्व धारण किया है, वे मेरे इस अविनाशी और सर्वोत्तम दिव्य स्वरूप की प्रकृत्ति को नहीं जान पाते।
Commentary
कुछ लोग दृढ़तापूर्वक यह दावा करते हैं कि भगवान निराकार है जबकि अन्य लोग निश्चयपूर्वक कहते हैं कि भगवान केवल साकार रूप में है किन्तु ये दोनों दृष्टिकोण सीमित और अपूर्ण है। भगवान पूर्ण है इसलिए वे दोनों निराकार और साकार रूप में विद्यमान रहते हैं। इसकी चर्चा श्लोक 4.5 और 4.6 की टीका टिप्पणी में की गयी है। भगवान के दोनों रूपों को स्वीकार करने वाले लोगों के मध्य कभी-कभी यह विवाद उत्पन्न होता है कि भगवान के इन दोनों रूपों में से कौन सा रूप वास्तविक है। क्या निराकार रूप साकार व्यक्तित्त्व के रूप में प्रकट होता है या इसके विपरीत? श्रीकृष्ण यहाँ इस विवाद का समाधान यह कहकर करते हैं कि उनका दिव्य व्यक्तित्व आदिकालीन अर्थात मूल है और यह निराकार ब्रह्म से प्रकट नहीं हुआ है। भगवान आध्यात्मिक क्षेत्र में अपने दिव्य स्वरूप में नित्य विद्यमान रहते हैं। निराकार ब्रह्म एक ज्योति है जो उसके अलौकिक शरीर से प्रकट होती है। पद्मपुराण में वर्णन है
यन्नाखेंदुरुचिरब्रह्म ध्येयं ब्रह्मदिभीः सुरेः
गुणत्रयमातितं तम वन्दे वृन्दावनेश्वरम्
(पद्मपुराण, पाताल खण्ड-77.60)
"भगवान के पैर के नखों से प्रकट होने वाली ज्योति की ज्ञानी ब्रह्म के रूप में पूजा करते हैं।" वास्तव में भगवान के साकार और निराकार रूपों के बीच कोई अन्तर नहीं है। ऐसा नहीं है कि एक बड़ा और दूसरा छोटा है। निराकार ब्रह्म स्वरूप में भगवान की सभी शक्तियाँ और सामर्थ्य विद्यमान रहती हैं किन्तु वे अप्रकट रहती हैं। उनके साकार रूप में उसके नाम, रूप, लीलाओं, गुण, धाम और संत सब उनकी दिव्य शक्ति से प्रकट होते हैं। तब फिर लोग भगवान को साधारण मानव क्यों मानते हैं? इस प्रश्न के उत्तर की व्याख्या अगले श्लोक में की गयी है।