Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 18

अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसञके ॥18॥

अव्यक्तात-अव्यक्त अवस्था से; व्यक्तयः-व्यक्तावस्थाः सर्वाः-सारेः प्रभवन्ति–प्रकट होते हैं; अहः-आगमे ब्रह्मा के दिन का शुभारम्भ; रात्रि-आगमे रात्रि होने पर; प्रलीयन्ते-लीन हो जाते हैं; तत्र-उसमें; एव-निश्चय ही; अव्यक्त-अप्रकट; अव्यक्त-संज्ञके-अव्यक्त कहा जाने वाला।

Translation

BG 8.18: ब्रह्मा के दिन के शुभारम्भ पर सभी जीव अव्यक्त अवस्था से व्यक्त होते हैं और रात्रि होने पर पुनः सभी जीव अव्यक्त अवस्था में लीन हो जाते हैं।

Commentary

ब्रह्माण्ड के अद्भुत ब्रह्माण्डीय खेल में विभिन्न लोकों और उनकी अपनी ग्रह प्रणालियों में सृष्टि के सृजन, स्थिति और प्रलय के चक्रों की पुनरावृति होती रहती है। ब्रह्मा के दिन की समाप्ति पर जो एक कल्प के अंतर्गत 4,3,20,000,000 वर्षों के बराबर है, महर लोक तक की ग्रह प्रणालियाँ विनष्ट हो जाती हैं। इसे नैमित्तिक प्रलय अर्थात आंशिक प्रलय कहा जाता है। श्रीमद्भागवतम् में शुकदेव परीक्षित को अवगत कराते हैं कि जिस प्रकार से बालक दिन में खिलौने से संरचनाएँ बनाता है और उन्हें सोने से पहले नष्ट कर देता है। 

उसी प्रकार से ब्रह्मा दिन में अपनी जागृत अवस्था में ग्रह प्रणालियों और उनके जीवन रूपों की रचना करते है और रात्रि में सोने से पूर्व उन्हें नष्ट कर देते हैं। ब्रह्मा के जीवन के 100 वर्षों के अन्त में संपूर्ण ब्रह्माण्ड का संहार हो जाता है। उस समय समस्त भौतिक सृष्टि का अंत हो जाता है। पंच महाभूतों का पंच तन्मात्राओं में विलय और पंच तन्मात्राओं का अहंकार और अहंकार का विलय महान में तथा महान् का विलय प्रकृति में हो जाता है। प्रकृति भौतिक शक्ति माया का सूक्ष्म रूप है तब माया अपनी मौलिक अवस्था में महा विष्णु परमात्मा के शरीर में जाकर स्थित हो जाती है। इसे प्रकृति प्रलय और या महाप्रलय कहते हैं जब महा विष्णु पुनः सृष्टि सृजन करने की इच्छा करते हैं तब वे प्रकृति के रूप में मायाशक्ति शक्ति पर दृष्टि डालते हैं और वह केवल उनके दृष्टि डालने से विकसित होती है। प्रकृति से महान और महान से अहंकार उत्पन्न होता है। अहंकार से पंचतन्मात्राएँ और पंचतन्मात्राओं से पंचमहाभूतों की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार से अनन्त ब्रह्माण्डों की सृष्टि होती हैं। आज के युग के वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार आकाशगंगा में 100 करोड़ तारे हैं। एक आकाशगंगा के समान ब्रह्माण्ड में 1 करोड़ तारा समूह हैं। वेदों के अनुसार हमारे ब्रह्माण्ड के समान विभिन्न आकार के अनन्त ब्रह्माण्ड भी अस्तित्व में हैं। हर समय जब महाविष्णु श्वास लेते हैं तब उनके शरीर के छिद्रों से असंख्य ब्रह्माण्ड प्रकट होते हैं और जब वे श्वास बाहर छोड़ते हैं तब सभी ब्रह्माण्डों का संहार हो जाता है। इस प्रकार से ब्रह्मा के 100 वर्षों का जीवन महाविष्णु की एक श्वास के बराबर है। प्रत्येक ब्रह्माण्ड का एक ब्रह्मा, विष्णु और शंकर होता है। इस प्रकार असंख्य ब्रह्माण्डों में असंख्य ब्रह्मा, विष्णु और शंकर हैं। सभी ब्रह्माण्डों के समस्त विष्णु, महाविष्णु का विस्तार हैं।