Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 22

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥22॥

वेदानाम् वेदों में; साम-वेदः-सामवेद; अस्मि-हूँ; देवानाम्-देवताओं में; अस्मि-हूँ; वासवः-स्वर्ग के देवताओं का राजा इन्द्र; इन्द्रियाणाम् इन्द्रियों में; मनः-मन; च-और; अस्मि-हूँ; भूतानाम्-जीवों में; अस्मि-हूँ; चेतना-जीवन दायिनी शक्ति।

Translation

BG 10.22: मैं वेदों में सामवेद, देवताओं में स्वर्ग का राजा इन्द्र हूँ। इन्द्रियों के बीच में मन और जीवित प्राणियों के बीच चेतना हूँ।

Commentary

 चार प्रकार के वेदों के नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद हैं। इनमें से सामवेद में भगवान के वैभवों का वर्णन किया गया है, जैसे कि ये स्वर्ग के देवताओं में प्रकट होते हैं जो ब्रह्माण्ड के प्रशासन का संचालन करने के प्रभारी हैं। सामवेद अत्यंत संगीतमय भी है और इसे भगवान की प्रशंसा में गाया जाता है। यह उनका मन हर लेता है जो इसे समझते हैं और यह इसे श्रवण करने वालों में भक्ति भाव उत्पन्न करता है। स्वर्ग के देवता इन्द्र का दूसरा नाम वासव है। उसका यश, शक्ति और पदवी जीवात्माओं में अद्वितीय है। कई जन्मों के पुण्य कर्मों के फलस्वरूप किसी विरली पुण्यात्मा को इन्द्र के पद पर पदोन्नत किया जाता है इसलिए इन्द्र भगवान की दीप्तिमान महिमा दर्शाता है। पांच इन्द्रियाँ उसी दशा में सुचारू रूप से काम करती हैं जब मन सचेत रहता है। यदि मन भटक जाता है तब इन्द्रियाँ सुचारू रूप से कार्य नहीं कर सकती।

 उदाहरणार्थ हम अपने कानों से लोगों के वार्तालाप को सुनते हैं किन्तु यदि उनके बोलते समय हमारा मन भटक जाता है तब उनके शब्द हमारे कानों को सुनाई नहीं देते। इसलिए मन इन्द्रियों का राजा है। श्रीकृष्ण इसकी चर्चा अपनी शक्ति को दर्शाने के लिए करते हैं और बाद में भगवद्गीता के अध्याय 15.6 में उन्होंने मन का उल्लेख छठी और महत्वपूर्ण इन्द्रिय के रूप में किया है। चेतना जीवात्मा का वह गुण है जिसके द्वारा जड़ और चेतन पदार्थों में अन्तर का बोध होता है। जीवित मनुष्यों के शरीर में चेतना की उपस्थिति और मृत व्यक्ति में चेतना के अभाव से ही जीवित और मृत व्यक्ति के अन्तर का पता चलता है। भगवान की दिव्य शक्ति द्वारा चेतना आत्मा में व्याप्त रहती है।

चेतनश्चे तनानाम्।

(कठोपनिषद्-2.2.13) 

"भगवान सभी चेतन पदार्थों में परम चेतन है।"