Bhagavad Gita: Chapter 16, Verse 8

असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम् ॥8॥

असत्यम्-परम सत्य के बिना; अप्रतिष्ठम् बिना आधार के; ते वे; जगत्-संसार; आहुः-कहते हैं; अनीश्वरम्-भगवान के बिना; अपरस्पर-अकारण; सम्भूतम्-सृजित; किम्-क्या; अन्यत्-दूसरे; काम-हैतुकम्-केवल काम-वासना तृप्ति के लिए।

Translation

BG 16.8: वे कहते हैं, संसार परम सत्य से रहित और आधारहीन है तथा यह भगवान रहित है जो इसका सृष्टा और नियामक है। यह दो विपरीत लिंगों से उत्पन्न होता है और कामेच्छा के अतिरिक्त इसका कोई अन्य कारण नहीं है।

Commentary

अनैतिक आचरण से दूर रहने के दो मार्ग हैं। प्रथम मार्ग आत्म बल के प्रयोग द्वारा अधर्म से विरक्त रहना। दूसरा मार्ग भगवान के भय के कारण पाप कर्मों से दूर रहना। केवल इच्छा शक्ति के आधार पर बहुत कम लोगों में पाप कर्मों से विरक्त रहने की सामर्थ्यता होती है। अधिकांश लोग दण्ड के भय से बुरे कामों से विलग रहते हैं। उदाहरणार्थ राष्ट्रीय राजमार्ग पर जिस समय वाहन चालकों को पुलिस की मोबाईल वैन खड़ी होने का पता चलता है तब चालक शीघ्र अपने वाहन को अनुमत्य गति के अनुसार धीमा कर देते हैं लेकिन जब उन्हें यह प्रतीत होता है कि अब पकड़े जाने का कोई जोखिम नहीं है तब वे वाहन की गति सीमा को बढ़ाने में कोई संकोच नहीं करते। इस प्रकार से यदि हम भगवान में विश्वास रखते हैं तब उनके भय के कारण हम अनैतिक आचरण करने से बचे रहेंगे। इसके विपरीत यदि हम भगवान में विश्वास नहीं करते तब भी उनके सभी विधि-विधान हम पर लागू होंगे और हमें अपने दुर्व्यवहार का परिणाम भुगतना पड़ेगा। 

आसुरी स्वभाव वाले लोग अधिकृत सत्ताओं की आज्ञाओं और आचरण नियमों का पालन नहीं करते जोकि भगवान में विश्वास करने का स्वाभाविक सिद्धांत है। इसके विपरीत वे इस मत का प्रचार करते हैं कि कोई भगवान नहीं है और संसार में नैतिक व्यवस्था का कोई आधार नहीं है। वे 'महा विस्फोटक सिद्धांत' (बिग बैंग थ्योरी) का प्रचार करते हैं जिसकी अवधारणा यह है कि संसार का सृजन सृष्टि के शून्य समय पर आकस्मिक विस्फोट के कारण हुआ और इसलिए संसार में कोई भगवान नहीं है। ऐसे सिद्धांत पश्चाताप और परिणामों के भय के बिना उन्हें कामुक तृप्तियों में संलग्न रहने की अनुमति देते हैं। इन्द्रिय तुष्टि के विभिन्न रूपों में यौन संलिप्तता सबसे प्रबल है। इसका कारण भौतिक क्षेत्र आध्यात्मिक क्षेत्र के विकृत प्रतिबिंब के समान है। आध्यात्मिक क्षेत्र में दिव्य प्रेम, मुक्त आत्माओं के कर्मों और भगवान के साथ उनके साक्षात्कार का आधार है। इसका विकृत प्रतिबिंब काम-वासना भौतिकता में संलिप्त विशेषकर रजोगुण के प्रभुत्व में रहने वाली आत्माओं की चेतना पर हावी हो जाता है। इस प्रकार आसुरी मनोवृति वाले व्यक्ति भोग-विलास और कामुकतापूर्ण जीवन में लिप्त रहने को मानव जीवन के उद्देश्य के रूप में देखते हैं।