Bhagavad Gita: Chapter 12, Verse 12

श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्धयानं विशिष्यते ।
ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् ॥12॥

श्रेयः-उत्तम; हि-निश्चय ही; ज्ञानम्-ज्ञान; अभ्यासात्–शारीरिक अभ्यास से; ज्ञानात्-ज्ञान से; ध्वानम्-ध्यान; विशिष्यते-श्रेष्ठ समझा जाता है; ध्यानात्-ध्यान से; कर्म-फल-त्यागः-समस्त कर्म फलों का त्याग; त्यागात्-त्याग से; शान्तिः-शान्ति; अनंतरम्-शीध्र।

Translation

BG 12.12: शारीरिक अभ्यास से श्रेष्ठ ज्ञान है, ज्ञान से श्रेष्ठ ध्यान है और ध्यान से श्रेष्ठ कर्म फलों का परित्याग है और ऐसे त्याग से शीघ्र मन को शांति प्राप्त होती है।

Commentary

कई लोग शारीरिक अभ्यास तक ही सीमित रहते हैं। उन्हें अपने धार्मिक सम्प्रदाय के कर्मकाण्डों के पालन में आनन्द मिलता है लेकिन वे मन को भगवान में अनुरक्त नहीं करते। जब वे नया घर या नयी कार क्रय करते हैं तब वे पंडित को बुलाकर पूजा अनुष्ठान करवाते हैं और जब पंडित पूजा करता है उस समय वे दूसरे कमरों में बैठकर वार्तालाप करते हैं और चाय की चुस्कियाँ लेते हैं। उनके लिए भक्ति केवल कर्मकाण्डों के प्रदर्शन से अधिक और कुछ नहीं। यह केवल धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करने की प्रवृत्ति है जो संस्कारवश हमें पूर्वजों से प्राप्त होती है। शारीरिक रूप से धार्मिक अनुष्ठान करना अनुचित नहीं है क्योंकि कुछ न करने से कुछ करना अच्छा होता है। आखिरकार ऐसे लोग बाह्य रूप से भक्ति में लीन तो रहते हैं। हालांकि श्रीकृष्ण कहते हैं कि शारीरिक अभ्यास से श्रेष्ठ आध्यात्मिक ज्ञान को पोषित करना है। इस ज्ञान से यह बोध होता है कि भगवद्प्राप्ति ही जीवन का लक्ष्य है न कि भौतिक उन्नति। जो ज्ञानयुक्त हो जाता है वह खोखली धार्मिक क्रिया विधियों से परे हो जाता है और अंत:करण को शुद्ध करने की अभिलाषा विकसित करता है किन्तु केवल कोरे ज्ञान से मन की शुद्धि नहीं हो सकती। इसलिए श्रीकृष्ण कहते हैं कि ज्ञान अर्जन करने से श्रेष्ठ मन को ध्यान की प्रक्रिया में लगाना है। वास्तव में ध्यान द्वारा हम मन को वश में कर सांसारिक सुखों के प्रति विरक्ति की भावना को विकसित करना आरम्भ कर सकते हैं। जब मन विरक्ति के गुणों के कुछ मापदण्ड विकसित करता है तब हम अगले चरण का अभ्यास कर सकते हैं जो कि कर्म-फलों का परित्याग है। जैसा कि पिछले श्लोक में व्याख्या की गयी है कि इससे मन को सांसारिक विषयों से हटाने में और बुद्धि को दृढ़ कर उसे आगे उच्चावस्था की ओर ले जाने में सहायता मिलती है।